87 वर्ष की उम्र में डॉ. डॉ सत्य नारायण दुबे 'शरतेंदु' ने किया बाल्मीकि रामायण का ऐतिहासिक पद्यानुवाद

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जौनपुर के गौरव डॉ. डॉ सत्य नारायण दुबे  'शरतेंदु: 87 वर्ष की उम्र में भी साहित्य सेवा में सतत सक्रिय सक्रिय, प्रो.अजय कुमार दुबे (प्रोफेसर शिक्षक शिक्षा विभाग, डीन शिक्षा संकाय (VBSPU), मीडिया प्रभारी-टी.डी. पी. जी.कॉलेज, जौनपुर) के साथ

जौनपुर (उत्तर प्रदेश): जनपद जौनपुर के प्रतिष्ठित साहित्यकार, शिक्षाविद् और पद्य अनुवादक डॉ. सत्य नारायण दुबे 'शरतेंदु' आज भी 87 वर्ष की उम्र में निरंतर लेखन कर समाज को प्रेरित कर रहे हैं। मड़ियाहूं तहसील के ददरा ग्राम निवासी डॉ. शरतेंदु ने दुर्गा सप्तशती, श्रीमद्भगवद्गीता, और वाल्मीकि रामायण का सरल हिंदी पद्यानुवाद कर न केवल जनपद, बल्कि पूरे देश को गौरवान्वित किया है।

पिछले सात वर्षों में उन्होंने वाल्मीकि रामायण के सभी कांडों का पद्यानुवाद पूर्ण कर प्रकाशित किया, जो साहित्यिक जगत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है। प्रारंभ में उन्होंने केवल सुंदरकांड के पद्यानुवाद की योजना बनाई थी, किंतु प्रभु श्रीराम की कृपा से उन्होंने यह महत्त्वपूर्ण ग्रंथ पूर्ण किया।

शिक्षण और साहित्य का अद्भुत संगम

डॉ. शरतेंदु ने 1 जुलाई 1964 से 30 जून 1999 तक गांधी स्मारक पीजी कॉलेज, समोधपुर में शिक्षक शिक्षा विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। बीएड विभाग में नियुक्ति के बावजूद वे इतिहास, राजनीति शास्त्र, और हिंदी के विषयों में भी छात्रों को शिक्षित करते रहे। उनकी लेखनी का प्रभाव इस बात से स्पष्ट है कि उन्होंने 300 से अधिक कहानियां, कविताएं, उपन्यास और कई शैक्षिक पाठ्य पुस्तकें लिखी हैं, जो विद्यार्थियों और शिक्षकों में अत्यंत लोकप्रिय हैं।

विद्वानों और पुरस्कारों से सजी साहित्यिक यात्रा

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक, स्नातकोत्तर, एम.एड. और पीएचडी डिग्रियों से शिक्षित डॉ. शरतेंदु को देश के महान साहित्यकारों जैसे फिराक गोरखपुरी, हरिवंश राय बच्चन, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', और धर्मवीर भारती जैसे गुरुओं का मार्गदर्शन मिला।

उनकी साहित्यिक कृतियों को देश के उच्चतम स्तर पर सराहना मिली। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने उनकी काव्यकृति 'भारत भूमि महान' का विमोचन कर उन्हें सम्मानित किया। दलित साहित्य अकादमी द्वारा उन्हें डॉ. भीमराव अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और विशिष्ट सेवा सम्मान प्रदान किया गया।

पूर्व राज्यपाल श्री माता प्रसाद ने 'जय स्वतंत्र भारत' काव्य ग्रंथ का विमोचन कर उन्हें विशेष सम्मान से विभूषित किया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने उनकी कृति 'लोक साहित्य की रूपरेखा' पर रामनरेश त्रिपाठी पुरस्कार प्रदान किया।

जीवन का संकल्प: मौन साधना और लेखनी

25 नवंबर 1938 को जन्मे डॉ. शरतेंदु आज भी प्रतिदिन 8 से 10 घंटे लेखन कार्य कर रहे हैं। प्रचार-प्रसार से दूर रहकर वे शोधार्थियों, विद्यार्थियों और शिक्षकों को नि:स्वार्थ भाव से मार्गदर्शन देते हैं। उनका जीवन एक प्रेरणा है कि समर्पण, साधना और सेवा से कोई भी आयु सीमा साहित्य और शिक्षा के पथ में बाधा नहीं बन सकती।

डॉ. शरतेंदु न केवल जौनपुर की, बल्कि समस्त भारत की साहित्यिक धरोहर हैं।


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