सिंघाड़े की बेहतर पैदावार के लिए खाद और उर्वरक की उपलब्धता फसल को सुनिश्चित करना जरूरी होता है. इसी तरह सिंघाड़े की फसल में भी पोल्ट्री की खाद के साथ-साथ जैव या रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल करने से सिंघाड़े की फल की अच्छी पैदावार मिलती है. सिंघाड़े (Water Chestnut) की खेती जलाशयों, तालाबों या रुके हुए पानी में की जाती है और यह किसानों के लिए एक लाभकारी फसल बन सकती है अगर सही तकनीकों और सामग्री का उपयोग किया जाए। यदि किसान भाई सिंघाड़े की पैदावार बढ़ाना चाहते हैं, तो निम्नलिखित उपाय और चीजों का प्रयोग करके बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं:
✅ सिंघाड़े की अच्छी पैदावार के लिए जरूरी बातें:
1. उपयुक्त भूमि और पानी का चयन:
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तालाब, छोटी झीलें या कम गहराई वाले जलाशय सिंघाड़े की खेती के लिए आदर्श होते हैं।
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जल की गहराई 1 से 2 मीटर होनी चाहिए।
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मिट्टी की किस्म दोमट या चिकनी हो, जिसमें जैविक पदार्थ (organic matter) अधिक हो।
2. अच्छे बीज का चयन:
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स्वस्थ, कीट-मुक्त और बड़े आकार के बीज (गांठ या फल) का चयन करें।
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बीजों को लगाने से पहले 10-15 दिन पानी में भिगो दें, जिससे अंकुरण अच्छा हो।
3. उर्वरकों का सही प्रयोग:
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गोबर की खाद: प्रति एकड़ 10-15 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद डालें।
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हरी खाद (Green Manure): खेत की मिट्टी में नमी और जैविकता बनाए रखने में मदद करती है।
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NPK उर्वरक: मिट्टी परीक्षण के बाद आवश्यकतानुसार नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित उपयोग करें।
4. बायोफर्टिलाइज़र और माइक्रोबियल खाद:
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Trichoderma, Azospirillum, या Azotobacter जैव उर्वरक का प्रयोग करें ताकि मिट्टी की उर्वरता बढ़े और पौधों को रोगों से बचाया जा सके।
5. सिंचाई और जल प्रबंधन:
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खेत में हमेशा पानी की उपयुक्त गहराई बनाए रखें।
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जल में ऑक्सीजन की मात्रा बनी रहे इसके लिए पानी का हल्का बहाव या हवा का संचार जरूरी है।
6. कीट और रोग नियंत्रण:
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सिंघाड़े की फसल में बहुत कम कीट या रोग लगते हैं, फिर भी रोकथाम के लिए नीम का तेल या जैविक कीटनाशकों का छिड़काव करें।
7. फसल चक्र और समय:
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सिंघाड़े की खेती मई-जून में शुरू होती है और अक्टूबर-नवंबर तक फसल तैयार हो जाती है।
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सही समय पर रोपाई और कटाई करना जरूरी है।
💡 अतिरिक्त सुझाव:
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फसल की निगरानी नियमित रूप से करें।
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स्थानीय कृषि विभाग या कृषि विश्वविद्यालय से सलाह लेते रहें।
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किसानों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम या वर्कशॉप में भाग लें।
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