जौनपुर में हुआ 35035 पार्थिव शिवलिंग पूजन व महारुद्राभिषेक

पार्थिव शिवार्चन से समस्त पाठकों का होता है नाश : आचार्य (डॉ) रजनीकांत द्विवेदी जी 


जौनपुर। जनपद के बड़े हनुमान जी मंदिर के परिसर में पंडित बांके महाराज ज्योतिष संस्थान के तत्वाधान और आचार्य (डॉ.)रजनीकांत द्विवेदी जी के सानिध्य में महारुद्राभिषेक का आयोजन किया गया। शिव की उपासना के पौराणिक महत्व की चर्चा करते हुए आचार्य द्विवेदी ने बताया कि मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम ने भी लंका पर आक्रमण करने से पूर्व समुद्र तट पर बालू का शिवलिंग बनाकर पूजन किया था। मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिए भी महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है। शिवालय सिद्ध स्थान आदि की प्राप्ति ना होने पर पार्थिव शिवलिंग की पूजा कर जाप किया जाने का विधान है। आचार्य (डॉ) रजनीकांत द्विवेदी जी ने यह भी बताया कि भगवान शिव का अभिषेक वर्षा हेतु जल से, पुत्र की प्राप्ति हेतु गाय के दूध से, लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु ईख के रस से, कल्याण हेतु घृत से,  पाप क्षय हेतु मधु से, व्याधि शांति हेतु कुश के जल से करना चाहिए।

पंडित बांके महाराज ज्योतिष संस्थान द्वारा आयोजित 35035 पार्थिव शिवलिंग पूजन व महारुद्राभिषेक के अवसर पर आचार्य (डॉ) रजनीकांत द्विवेदी जी ने बड़े हनुमान मंदिर रसमंडल पर बताया कि कलयुग में सबसे पहले पार्थिव पूजन कुष्मांड ऋषि के पुत्र मंडप ऋषि ने प्रभु के आदेश पर जगत कल्याण के लिए पार्थिव शिवलिंग बनाकर शिवार्चन किया। पार्थिव शिवलिंग पूजन के पृथक-पृथक कामनाओं के लिए पृथक-पृथक संख्या निर्धारित है जैसे धनार्थी के लिए 500, पुत्रार्थी के लिए 1500, दयार्थी के लिए 300 भय मुक्ति के लिए 200, राज्य भय से मुक्ति के लिए 500 व समस्त कामनाओं की पूर्ति के लिए 1000 पार्थिव शिवलिंग का पूजन रुद्राक्ष धारण कर ललाट पर भस्म लगाकर करना चाहिए। पूजन के प्रारंभ में सर्वप्रथम पार्थिव शिवलिंग की प्रतिष्ठा कर यजमानों ने विधिवत शिवलिंग का पूजन किया तत्पश्चात आचार्य (डॉ.) रजनीकांत जी के निर्देशन में काशी, अयोध्या और प्रयागराज से पधारे वैदिक विद्वानों के द्वारा नमक-चमक विधि से महारुद्राभिषेक यजमानों ने किया। महारुद्राभिषेक के पश्चात पुनः पार्थिव शिवलिंग का विधि विधान से पूजन कर महाआरती का कार्यक्रम संपन्न हुआ। 

कार्यक्रम में प्रमुख यजमान के रूप में श्री विवेक पाठक जी, श्री भास्कर पाठक, श्री नीरज उपाध्याय, श्री जगन्नाथ पाठक, श्री इंद्र कुमार तिवारी, श्री राजनाथ सिंह, श्री दिवाकर पाठक, श्री महेश जायसवाल, श्री शिव प्रकाश तिवारी, श्री संतोष कुमार साहू, श्री नितिन द्विवेदी, श्री दीपक श्रीवास्तव, श्री संजय गुप्ता, श्रीमती अनीता सेठ, श्रीमती पुष्पा सेठ, श्री अमित निगम, श्री अजय सेठ, श्री संजीव साहू, डॉ आर पी गुप्ता, श्री हरदेव सिंह, श्री मधुसूदन मिश्र, श्री मधुसूदन मिश्र, श्रीमती संगीता राय, श्री ध्रुव पाठक, श्री जे पी सिंह, श्री ज्ञानचंद्र सीताराम, श्री इंद्रजीत सेठ, श्री गणेश साहू, संतोष सेठ, श्री हरदेव राय जी, श्री विनोद अग्रहरि जी, श्री हेमंत श्रीवास्तव, श्री मनु मिश्र और श्री शैलेश मिश्र जी इत्यादि लोग उपस्थित रहे।

इस विशालतम कार्यक्रम को सफल बनाने में प्रमुख रूप से अध्यक्ष शशांक सिंह ‘रानू’, पंडित निशाकांत द्विवेदी, पंडित रौनक शुक्ला, डॉ. गंगाधर शुक्ला,  डॉ. दिव्येंदु मिश्र, पंडित प्रमोद मिश्र, पंडित अखिलेश पंडित पांडेय, पंडित प्रभाकर मिश्रा, पंडित शुभम मिश्रा, पंडित आनंद तिवारी, पंडित बृजेश कुमार मिश्रा, आशीष वैश्य शिव,शंकर साहू, अवनीश सिंह, मनोज मिश्रा, नीरज उपाध्याय बबलू, दयाशंकर निगम, आशीष यादव, मनोज गुप्ता, नीरज श्रीवास्तव, श्रीमती कविता मिश्रा, राधिका, माधुरी, वर्षा, मनीषा, मंजू और प्रियांशी तथा महंत राम रतन दास, मनोज पुजारी, भरत पुजारी, प्रखर, मृत्युंजय, प्रज्वल, अथर्व, अभिनव राय, कार्तिक मिश्रा मनीष मौर्य, धीरज राय, अभिषेक पाठक, कार्तिकेय पाठक, राधिका तिवारी सहित नगर के गणमान्य नागरिक व हजारों की संख्या में महिला पुरुष एकत्रित थे। 

शिव की उपासना श्रावण मास में विशेष फलदायी कही गई है  
विशेषकर पार्थिव शिवलिंग का अतिविशेष महत्व है, कलयुग में पार्थिव शिवलिंग पूजन करने वाले भक्तों पर शिव की कृपा सदैव बनी रहती है। शिव भक्त शिव पूजन करके इस लोक में यश, वैभव प्राप्त करने के साथ ही मृत्यु उपरांत जीवन-मरण के कुचक्र से मुक्ति हो जाती है। श्रावण मास को शिव का माह माना जाता है, इसलिए इस माह में पार्थिव शिवलिंग पूजन का विशेष पुण्य शिवभक्तों को प्राप्त होता है एवं अद्वितीय, परमशांत प्रकाशमय तेजस्वरूप, निष्प्रपंच, गतिशून्य, नित्यरूप, निराकार भगवान शिव की उपासना करने से प्राणी कष्टों से मुक्ति को प्राप्त कर लेता है।

रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं 
साधक में शिवतत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभ आशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है की एक मात्र सदा शिव रुद्र के पूजन से समस्त देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।

श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत व
शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है। 
रुद्राभिषेक अर्थात रुद्र का अभिषेक करना यानी कि शिवलिंग पर रूद्र मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना, जो कि वेदों में वर्णित है। शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रूद्र कहा जाता है क्योंकि दुख:म रुतम, द्रावयति  नाशयतिति रूद्र: अर्थात  भोले सभी दुखों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्म ग्रंथो के अनुसार हमारे द्वारा ही किए गए पाप ही हमारे दुखों के कारण है। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप है। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित है कि शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है। 

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